दादी अभी जिंदा हैं (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु-06-Jun-2024
कल 5जून पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण को संरक्षित करती हुई एक कहानी – अम्मा आज भी जिंदा है चाहे कोई भी धर्म हो वह हमें पर्यावरण को संरक्षित करने की सीख देते हैं। यही कारण है कि हर धर्म में शुभ अवसर पर प्रकृति के उपादानों, जैसे- पेड़- पौधों, लताओं आदि की पूजा किसी न किसी रूप में अवश्य की जाती है । या फिर इन से प्राप्त होने वाली चीजें जैसे- फल- फूल, पत्ता ,तेल, इत्र ,अगरबत्ती , घी आदि का किसी न किसी रूप में प्रयोग अवश्य होता है। क्या आपको यह नहीं लगता कि, यह उत्सव मनाने की विधि हमें प्रकृति को संरक्षित करने को प्रेरित करती है। बिल्कुल ठीक समझे आप, हर धर्म हमें प्रकृति को संरक्षित करने ,उसे पूजने, उसका आदर सम्मान करने का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में सीख देते हैं। किंतु आज का भौतिकवादी मानव प्रकृति के इन सीखों की अनदेखी कर अपनी तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति हेतु उसका दोहन करने में लगा हुआ है उसे नहीं पता कि आज जो वह प्रकृति या पर्यावरण का अनदेखी कर रहा है आगे आने वाले समय में उसके लिए यह कितना घातक सिद्ध होने वाला है। इस बात का एहसास कराना प्रत्येक व्यक्ति के लिए परम आवश्यक था। किंतु प्रश्न यह था कि आखिर इस कार्य के लिए कदम आगे बढ़ाए कौन? बातों के धनी तो बहुत लोग थे लेकिन कर्म के कोई नहीं ऐसे में वहां यही बात चरितार्थ हो रही थी कि- कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय। कथनी तजि करनी करें, विष काहे कोई होय। ऐसे में जहां पूरा गांव बच्चे युवक-युवतियों से भरा हुआ था करनी करने के लिए अपना कदम आगे बढ़ाईं एक 50 वर्षीय अम्मा। इन्होंने पर्यावरण को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया। वो नित्य प्रातः काल उठतीं और अपने हाथ में एक छोटी बाल्टी और एक छोटी सी खुरपी लेतीं, और सामने के पार्क में घास साफ़ करना प्रारंभ कर देतीं। जहां की घास नहीं निकल पाती थी वहां उस छोटे से बाल्टी से पानी डालकर मिट्टी को नम करतीं ताकि घास अच्छी तरह से निकल जाए। घास को साफ़ करने के पश्चात आरंभ हुआ पार्क में बिखरे खर-पतवार कूड़े- कचरे को साफ़ करने का अभियान। इसके लिए उन्होंने सुग्रीव की भांति अपनी एक सेना बनाई और उस सेना के सदस्य थे उस कॉलोनी के छोटे-छोटे बच्चे। सेना के तैयार होते ही दो-चार दिनों में वह पार्क जो कूड़े -कचरे का ढेर था एक साफ-सुथरे खेल स्थल में तब्दील हो गया। इसके पश्चात प्रारंभ हुआ पार्क को हरा- भरा करने का अभियान। इसके लिए अम्मा अपनी सेना के किसी भी दो बच्चों को प्रति रविवार 20, 30 रुपए देतीं और उन पैसों से 2,4 पौधे और थोड़ा सा गोबर का खाद मंगाती, तथा 5,10 रुपए बच्चों को खाने के लिए दे देतीं। पौधे और खाद लाने के पश्चात बच्चे अपने-अपने अपने घरों को चले जाते और अम्मा पार्क में खुदाई करके पौधों को लगातीं , सींचती और मन ही मन आह्लादित होतीं। यह कार्य प्रत्येक रविवार का हो गया। प्रत्येक रविवार अम्मा 3,4 पौधे लगातीं और पूरे सप्ताह उसकी सिंचाई करतीं। कुछ ही महीनों में यह पार्क हरा – भरा हो गया ।पार्क के किनारे- किनारे चारों तरफ से हरे भरे पेड़ लहलहाने लगे। वृक्षारोपण का कार्य पूर्ण होने के पश्चात अम्मा प्रत्येक रविवार बच्चों को सिंचाई के कार्य में लगा देतीं। समय के साथ-साथ बच्चों को भी इस कार्य में आनंद आने लगा। सारे बच्चे रविवार के दिन बिना बुलाए ही मौसम के अनुकूल 4:00 से 5:00 बजे प्रातः अपने आप ही पार्क में आकर हाजिरी लगा देते और अम्मा से पूछते हां अम्मा बताइए आज का क्या काम है ? पर्यावरण के प्रति बच्चों तथा उनके अभिभावक के अंदर इस जागरूकता को देखकर अम्मा को अपार प्रसन्नता होती। अभिभावक इसलिए क्योंकि बिना अभिभावक की मर्जी के बच्चे पार्क में नहीं आ सकते थे।अब वृक्षारोपण का कार्य पूर्ण होने के पश्चात सिंचाई का कार्य अम्मा को न करना पड़ता। इस कार्य को उनकी बानरी सेना ही बड़े ही सफलतापूर्वक कर डालती। समय आगे बढ़ता गया वृक्ष बड़े होते गए और अम्मा बूढ़ी। किंतु तब तक उनकी बानरी सेना को यह बात भली-भांति समझ में आ गई थी कि, यह पेड़ -पौधे नहीं अम्मा की जान हैं। अतः हमें इन्हें हर हाल में हरा- भरा और सुरक्षित रखना है। प्रकृति का नियम है, जो धरती पर पैदा होता है उसे इसे अलविदा कह कर जाना भी होता है। यह बात अम्मा पर भी लागू होती थी, और एक दिन ऐसा हुआ कि अम्मा अपने मोहल्ले, अपने बानरी सेना और अपने लगाए गए हरे- भरे वृक्षों को छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह कर चली गईं। अम्मा तो अब उस मोहल्ले में कभी दिखाई नहीं पड़तीं, लेकिन उनके हाथों से लगाए गए पौधे आज भी उस मोहल्ले की शोभा बढ़ाते हैं। तथा शीतल व सुगंधित वायु सभी को आरोग्यता प्रदान करते हैं। यदि कोई उस मोहल्ले के बाहर का व्यक्ति जिसे अम्मा और उन वृक्षों के लगाव के बारे में पता नहीं है उन वृक्षों की एक भी टहनी को अनायास तोड़ना चाहा तो उसकी खैर नहीं है ।बस मोहल्ले में रहने वाले अम्मा की वानरी सेना जो अब युवक हो गए हैं उस व्यक्ति को तुरंत समझाते इस बार तो तुमने तोड़ दिया लेकिन अब आगे से वृक्षों को कभी भी किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाना। क्योंकि, यह वृक्ष नहीं हमारी अम्मा है, हम इन पेड़-पौधों में अपनी अम्मा को देखते हैं। लोगों के लिए हमारी अम्मा भले ही मर गई हों लेकिन हमारे लिए, इस मोहल्ले के लिए अम्मा आज भी इन पेड़-पौधों के रूप में जिंदा है। जिंदा है इन हवाओं में, इंन पर लगने वाले कलियों , फूलोंऔर फलों में बस आवश्यकता है उन्हें महसूसने की।
Anjali korde
07-Jun-2024 06:47 AM
Awesome
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